Ghar By RJ Vashishth
एक घर ऐसा भी..
ना ही
वो
पेड़ो
के
बिच
में
बना
होगा..
ना ही
वो
पहाड़ो
के
बिच
में
खड़ा
होगा..
और ना
ही
वो
कहानियों
वाले
महलों
जितना
बड़ा
होगा..
वो तो
तेरे
और
मेरे
दिल
में
जड़ा
होगा..
एक घर ऐसा भी..
हाँ उसमे
चार
दीवारे
होंगी..
चार कमरों
की
भरमारें
भी
होंगी..
बाहर Garden होगा
और
Lilies की
डाली
भी
होगी..
जिसमे खेलेंगे
हम
तुम
With Our Doggy ..
एक घर ऐसा भी..
ना ही
मैं
कभी
चाहता
हूँ
कि
कभी
झगड़े
ना
हो..
ना ही
मैं
चाहता
हूँ
कि
दो
बर्तन
टकराते
ना
हो..
ना ही
मैं
चाहता
हूँ
कि
एक
पल
के
लिए
गम
कि
बारिश
ना
हो..
और ना
ही
मैं
चाहता
हूँ
कि
तुमसे
दूरियों
कि
ख़्वाहिश
ना
हो..
एक घर ऐसा भी..
पर हाँ
अगर
झगड़े
होंगे
तो
चाय
कि
पत्ती
उबल-
उबल
के
दूध
में
मिल
जाये,
वैसा तेरा
और
मेरा
स्वाद
होगा..
बर्तन गर
टकराएंगे
तो
रात
को
बिल्ली
ने
गिराए
थे
वैसा
कर
देंगे
ढोंगा..
बारिश गर
गम
कि
होगी
तो
पहन
लेंगे
तेरे
मेरे
प्यार
का
चोगा..
और गर
दूरियां
आ
गई
तो
पास
लाने
में
मैं
ले
लूंगा
कोई
भी
दर्दीला
रोगा..
एक घर ऐसा भी..
ना ही
वो
पेड़ो
के
बिच
में
बना
होगा..
ना ही
वो
पहाड़ो
के
बिच
में
खड़ा
होगा..
और ना
ही
वो
कहानियों
वाले
महलों
जितना
बड़ा
होगा..
वो तो
तेरे
और
मेरे
दिल
में
जड़ा
होगा..
एक घर ऐसा भी..
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