Shuru Hui Adhuri Kahani By RJ Vashishth

Shuru Hui Adhuri Kahani By RJ Vashishth


Shuru Hui Adhuri Kahani By RJ Vashishth

 

एक बात कहु बड़ा वक़्त लगा ये सोचते, ये लिखते और खास तो ये भेजते..

You Know दिमाग सब कुछ Block कर सकता है..

पर ये दिल ऐसे ही कैसे किसी को रोक दे, कैसे किसी को टोक दे..

कैसे भुला दे वो इंतज़ार के 22 मिनट जो Mall में घूमते- घूमते काटे..

कैसे भुला दे वो लम्हे जो गलती से या फिर जान बुझके हाथ थाम के बांटे..

कैसे भुला दे वो बिछड़ने के वक़्त की बेबसी..

और कैसे भुला दे वो इंतज़ार करुँगी वाली हसी..

कैसे भुला दे वो Seen देख के Typing का Blink होना..

और कैसे भुला दे तुम्हारा होके भी मेरी ज़िन्दगी में ना होना..

इन लम्हों को जब पीछे मुड के देखता हूँ..

तुम भी कुछ अलग- अलग सी लगती हो और मैं भी कुछ बदला- बदला सा लगता हूँ..

छोटा सा हिस्सा मुझसे छूट के तुम में और तुम्हारा छोटा सा हिस्सा छूट के मुझमे कुछ यूँ जुड़ गया है..

की अधूरे होके भी पुरे हुए हम, दो रहके भी एक हुए हम..

दो पल रुका ख़्वाबों का कारवां और फिर चल दिए तुम कहा हम कहा ऐसी Typical Line कहके Senti हो सकते है ना..

पर जो लम्हें हमने जीये है आँखों से वादे जो हमने किये है..

ख़ुशी और गम के अनगिनत घुट पिए है उनको कैसे भुला दे..

आगे क्या होगा नहीं होगा वो तो वक़्त ही बतलायेगा..

पर एक बात पक्की है हाथ एक हुआ है तो साथ भी एक ज़रूर होगा..

छोटा सा टुकड़ा खुद से छुड़वा के दूर तो जा रहा हूँ..

पर तेरा हिस्सा तुझी से चुरा के तेरे काफी पास रहा हूँ..

तो अपना ख्याल रखना...




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