Mere Rone Par Bhi Hansti Ho Tum by Kanha Kamboj

Mere Rone Par Bhi Hansti Ho Tum by Kanha Kamboj

Mere Rone Par Bhi Hansti Ho Tum by Kanha Kamboj

सारी रात उसे छूने से डरता रहा

मैं बेबस, बेचैन बस करवटें बदलता रहा

हाथ तो मेरा ही था उसके हाथ में

बस बात ये है कि जिक्र किसी और चलता रहा

 

तेरी हर हकीकत से रूबरू हो गया हूं मैं,

ये पर्दा किस बात का कर रही हैं

एक मैं हूं आंखों से आंसू नहीं रुक रहे,

एक तू है कि हंस के बात कर रही है

लहजे में मुआफ़ी, आँखों में शर्म तक नहीं,

ये एक्टिंग का कोर्स तू लाजवाब कर रही है


मेरे घर में आते ही बेफिजूल की बातें बना रही है…

हर बात से बेखबर हूँ ना जाने किस शक्श से पहचान करवा रही है…

किसी डर में है शायद ना जाने क्यों बार बार बिस्तर से सलवट हटा रही है…

 

जब पुकारना हो मुझे तो मेरा नाम भूल जाता है…

उसे इश्क़ तो आता है पर करना भूल जाता है…

और उसे कह दो की यूँ मुस्कुरा के ना देखे मुझे,

ये दिल पागल है धड़कना भूल जाता है…

 

तूने रिश्ता तोडा है मजबूरी होगी मैं मानता हूँ…

मुझे तो निभाने दे मैं तुझसे भला क्या मांगता हूँ…

और दर्द में देखकर तू मुझे मुस्कुरा रही है,

मैं कितना पागल हूँ तू हंसती रहे यही दुआ मांगता हूँ…

 

खुद से ही खुद को बदनाम करते है…

चलो उनका काम आसान करते है…

और चुबने लगी है ये धड़कनो की आहटें मुझको,

चलो इन्हे रोकने का इंतज़ाम करते है…

और करके यूँ बेइंतहा ज़ुल्म मुझपर,

कहती है चलो आज तुम्हे माफ़ करते है…

और धूल जमी थी खुद के चेहरे पर,

कहते है की चलो आइना साफ़ करते है…

 

वक़्त जाया ना कर मुझको पहचानने में…

तू खुद एक कहानी बन जायेगा मेरी हकीकत जानने में…

और चल दिए बेपरवाह देखने गहराई मेरे दर्द की,

इतना गहरा हूँ की जमाना निकल जायेगा मेरी गहराई नापने में…

 

गिरा ले मुझे अपनी नजरों से कितना ही,

झुकने पे मजबूर तो मैं तुझे भी कर दूंगा…

और एक बार बदनाम करके तो देख मुझे महफ़िल में,

कसम से शहर में मशहूर मैंने तुझे भी कर दूंगा…

 



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