Hum Betiyan by Monika Singh

Hum Betiyan by Monika Singh


Hum Betiyan by Monika Singh

 

मेरे बारे कोई राय कायम ना करना,

मेरा वक़्त बदलेगा आपकी राय बदल जाएगी…

ये जो मुझे देखते ही नजरें चुरा लेते है आज,

कल सबसे पहले उन्हें मेरी याद आएगी…

 

अक्सर एक याद आँखों से बह निकलती है…

मैं समझाती बहुत हूँ पर ये ना समझती है…

याद उस वक़्त की जब मैं छोटी थी…

याद उस वक़्त की जब मैं अपने पापा की बेटी थी…

जिनके लिए मेरी बड़ी सी खवाहिश भी बस इतनी सी होती थी…

याद उस वक़्त की जब मेरी हर फरमाइश पूरी होती थी…

बहुत ढूंढ़ती हूँ वो वक़्त पर ना जाने कहाँ खो गया….

बड़े होने पर मानो जैसे सबकुछ ही बदल गया…

मेरा बचपन मुझसे एक दिन में छिन गया…

जब "अब तुम इनकी अमानत हो" कहकर मुझे नए घर भेज दिया गया…

फिर वो घर और उसका हर रिश्ता ही बदल गया…

कल तक जो अपने थे वो पराये हो गए…

कुछ नए लोग कुछ नए रिश्तें जिंदगी में शामिल हो गए…

अब ना पहले सी वो मस्ती है ना शरारतो भरा वो जोश है…

बेइंतहा मुझपर अब जिम्मेदारियों का बोझ है…

कल तक जो बेटी थी वो आज माँ बन गयी…

और इस बदली परिभाषा से जीवन की हर भाषा ही बदल गयी…

प्यार मिलता बहुत है अब भी फिर भी एक कमी सी लगती है…

मुझे आज भी उस घर की याद बहुत खलती है…

बेटियां पराया धन है ये नियम जिसने भी बनाया होगा…

एक पल के लिए सही रोना तो उसे भी आया होगा…

समझ नहीं पायी आजतक भी कि कौनसा घर मेरा है….

वो जिसकी मैं रौनक थी या ये जिसमे मेरा बसेरा है…




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