Maa Tujhe Salaam by Monika Singh
नौ महीने अपने अंदर पाला है तूने मुझे, माँ ये तो दुनिया कहती है…
सच तो ये है माँ कि तू आज भी मुझे अपने भीतर पालती है…
हो कोई भी इम्तिहान ज़िन्दगी का मेरी,
मेरी चिंता में दुआ रातों हो जाती है…
थक के बैठ जाऊँ जो कभी इस दुनिया की बातों से मैं,
देकर होंसला तू मुझे मेरी हिम्मत बांधती है…
हो नहीं सकता तुझ जैसा इस दुनिया में कोई और,
जो मेरी हर गलती भुला मेरे लिए सलामती की दुआएं मांगती है…
माँ तुम अक्सर कहती थी ना कि जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा तुम्हें…
तुम्हारे अच्छे के लिए तुम्हें डांटने वाला,
जब इस दुनिया में माँ बाप के सिवा कोई और ना मिलेगा तुम्हें…
माँ मैं हर रोज उसे जीती हूँ वो जो तुम तब कहती थी…
पर मैं अब भी ना समझ पाती हूँ कि तुम इतना बोझ आखिर कैसे सहती थी…
इतने बड़े घर में तुमने कभी नहीं माँगा अपने लिए कोई स्पेस….
ना त्यौहार पर कोई नई साडी, ना बदलते फैशन के नाम पर कोई ड्रेस…
सबकी सुनती थी तुम पर खुद हमेशा खामोश ही रहती थी…
जो आंसू आये भी कभी तो कोने में खड़ी बहा लेती थी…
हम बच्चों की गलतियों का जिम्मेदार भी तुम्हें ठहराया जाता था….
बात कोई भी हो दोषी तुम्हें बताया जाता था…
फिर भी तुम बगैर अपनी किस्मत को कोस फिर से मुस्कुरा लेती थी….
माँ मैं अब भी ना समझ पाती हूँ कि तुम इतना बोझ आखिर कैसे सहती थी…
घर के सारे काम बगैर पापा की मदद तुम अकेले ही करती थी…
तब तो सहूलियत के नाम पर कोई मेड ये कोई मशीन भी ना होती थी…
घर तुम्हारा तब भी हमसे ज्यादा अप टू डेट रहता था…
हमारी जरूरतों का ख्याल तुम्हें हमसे बढ़कर रहता था…
वो जब दिन भर की थकान के बाद एग्जाम के टाइम रातों को तुम हमारे साथ जागती थी…
सोने में सबसे लेट और उठने में सबसे पहले होती थी…
माँ मैं अब भी ना समझ पाती हूँ कि तुम इतना बोझ आखिर कैसे सहती थी…
कुछ बुरा लगता ही नहीं था तुम्हें या बताती नहीं थी…
गुस्सा तुम्हें आता ही नहीं था या कोई समझेगा नहीं सोच जताती नहीं थी…
घर की नई प्लेट पर भी नाम तब बस पापा का होता था…
ये घर तुम्हारा भी तो है फिर नाम बस पापा का क्यों, क्यों ये सवाल तुम्हें कभी सताता ना था…
माँ इतना धीरज आखिर तुम लाती कहाँ से थी…
मन में कौतुहल को रोक हरदम बस शांत दरिया सी बहती थी…
माँ मैं अब भी ना समझ पाती हूँ कि तुम इतना बोझ आखिर कैसे सहती थी…
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