Maa By RJ Vashishth

Maa By RJ Vashishth


Maa By RJ Vashishth

 

माँ तेरी याद बहुत सताती है..

रात को देरी से सो जाऊ तो अब डांट नहीं सुनाती..

सुबह को जल्दी उठाने के लिए कोई आवाज़ भी नहीं आती..

माँ तेरी याद बहुत सताती है..

 

बाहर का खाना अच्छा नहीं है मत खा, ऐसा कई बार सुना था..

तब चोरी छुपे खा लेते थे..

आज तुझसे दूर है तो बेस्वाद ही सही बाहर का खाना खा लेते है..

पर जीभ से तेरे हाथो की बनी रोटी की मिठास ना जाती..

उसको बनाते- बनाते कंगन की खनक नहीं सुनाई पड़ती..

माँ तेरी याद बहुत सताती है..

 

बेटा जल्दी घर जाना, रात को ठण्ड लगेगी, अच्छा सुन Sweater लेकर जाना ऐसा कई बार सुना था..

आज जब भी Office से घर वापस जाते ठण्ड लगती है तो माँ तेरी हर बात ज़रूर याद आती है..

माँ तेरी याद बहुत सताती है..

 

जब बेपरवाही से बीमार पड़ता तो तपती धुप में दौड़ के तू दवाई लेके आती..

बुखार को भगाने तू रात- रात भर गीले कपडे लगाती..

मुझे पहले खिलाती खुद ना खाती..

आज फिर से बुखार लाने की एक बचकानी सी चाहत दिल से आती है..

माँ तेरी याद बहुत सताती है..

 

मेरे लिए तू प्रार्थनाये करती, हर सुबह- शाम भगवान से लड़ती..

मेरी सफलता के लिए तू क्या- क्या ना करती..

पर तुझसे दूर होके मैं कोनसा सफल हुआ..

यही सवाल सोच के माँ तेरी याद बहुत सताती है..

रात को देरी से सो जाऊ तो अब डांट नहीं सुनाती..

सुबह को जल्दी उठाने के लिए कोई आवाज़ भी नहीं आती..

माँ तेरी याद बहुत सताती है...




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