Is Qaabil Nahi Ho Tum by Mansi Soni

Is Qaabil Nahi Ho Tum by Mansi Soni


Is Qaabil Nahi Ho Tum by Mansi Soni

 

तो मसरूफ हो आजकल अपनी नयी मोहब्बत के साथ…

सुना है वो बात बात पर झगड़ती नहीं…

और तुम तरसते हो उसे मनाने के लिए…

सुना है जिस्म तक की नजदीकियां बढ़ा चुके हों,

सिर्फ मुझसे दूर जाने के लिए…

सुना है वो आई लव यू टेक्स्ट पर नहीं,

तुम्हारे हाथों पर है लिखती…

फ़िर क्यू आखें नम हो जाती तुम्हारी,

जिस दिन तुम्हें उसमे मैं नहीं दिखती…

वो सुबह सुबह फोन करके तुम्हें उठाती नहीं होगी…

तुम्हें छूने से पहले दो पल अपनी नजरो के सामने बिठाती नहीं होगी…

यू वादे तो वो बड़े बड़े करती होगी बिल्कुल तुम्हारी तरह,

पर उन्हें निभाना नहीं जानती होगी…

यू हाथ पकड़कर दिलासे तों खूब देती होगी….

तुम्हारी आंख से बस वो बहने वाले अश्क को,

अपनी उंगली पर उठाना नहीं जानती होगी…

तो बता मेरी तरह तेरे आधे झूट को भी पूरा सच मान जाएगा

कौन मांगेगा खैर तेरी ये जानते हुए भी के हर दफा उसकी झूठी कसम खाएगा…

कोई कर सके मुझ सा प्यार एक बार फिर तुझे इस दुनिया में,

मुझे माफ़ करना मेरी जान इस काबिल नहीं हो तुम…

 

सुना है कि तुम्हें बात बात पर कसमे खाने पड़ती है,

क्युकी वो तुमपे जरा सा भी ऐतबार नहीं करती

गुस्सा होने पर फोन मत करना कहकर,

सच मे तुम्हारे फोन का इन्तेज़ार नहीं करती…

सुना है तुम्हें सीने से लगाने से पहले वो चूमना पसन्द करती है…

साथ वक़्त बिताने जैसे इश्क़ की उसे समझ नहीं,

इसलिए तुम्हारे साथ घूमना पसन्द करती है…

सुना है जिस विषय में तुम दोनों बात करते हो, वो भी मैं होती हूं….

तुम उसे कहते हो तुम मेरे लिए नहीं आज भी तुम्हारे लिये मैं रोती हूँ…

बिलकुल सही कहते हो क्युकी दो पल का भी सुकून तुम भी किसी को दे सको….

उसकी खुशियो की हिफाजत कर उसके ग़म को अपना कह सको…

अरे चढकर सूली इश्क़ की तुम दर्दों को सह सको…

मुझे माफ़ करना मेरी जान इस काबिल नहीं हो तुम…



सुना है महंगे तोहफे देते हो तुम उसे और वो भी मना नहीं करती

सूट पहनती है जिस दिन उसके दुपट्टे को तुम्हारे चहरे पर लहरा कर,

अपने इश्क़ मे फ़ना नहीं करती…

क्या ख़ूबी है तुम्हारी भी जिस जिस से तुम मिलते हो उसे अपना बना रहे हो….

जो पीछे छूट रहे हैं उन्हें कल रात का सपना बता रहे हो

इस सबके बाद भी वफा की बात करते हो

हो खुदा का खौफ करो, हर शाम एक नए शख्स से मुलाकात करते हो

तुम मुझे प्यार है अभी भी कहकर फंसा सके

वो कसमें वो वादे याद दिलाकर मुझे रुला सके

खुद को इन बेवफ़ाई की सलाखों के पीछे से आजाद कर सके

एक बार फिर मेरी जिंदगी की लालसा ढूँढ मुझे बर्बाद करने सके….

मुझे माफ़ करना मेरी जान इस काबिल नहीं हो तुम…

 

सुना है के शायर है वो भी मेरी तरह,

पर तुम्हारे बारे में तो एक भी बात नहीं लिखती

हा खूबसूरत अल्फाज लिखती होगी,

मगर सुना है कि मेरी तरह ज़ज्बात नहीं लिखती…

सुना है तुम रोक टोक करते हो वो फिर भी मनमानी करती है…

पर अफ़सोस तुम्हारे मुस्कुराने की वजह नहीं बन पाती,

जब भी कोई नादानी करती है…

किन किन बातों से तुम्हारा दिल दुख जाये वो ये भी नहीं जानती… 

क्या कहती है इश्क़ करती है इश्क़ के उसूलों में तो नहीं मनाती

सुना है मनाती नहीं तुम्हें ये पूछकर कहीं खफा तो नहीं…

अभी भी वक़्त है जा पूछ उससे कि कहीं तू भी मेरी तरह बेवफा तो नहीं…

कि माफ़ करना अगर तुझे लगा हो मेंने बेइज्जत किया है तुझे,

ये शायरी लिख कर मगर मेरी शायरी के लिखे,

हर लफ़्ज़ मे लिपटी इज़्ज़त तुझे मिल सके

मुझे माफ़ करना मेरी जान इस काबिल नहीं हो तुम…

 



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