Humare Beech Uska Bestfriend Soya Tha by Kanha Kamboj
सहमति रख ली तेरी मुझे गैर बताने में,
अपना मुझे भी आजकल कोई खैर नहीं लगता…
तुझे पहचानने से नकार रही है आवाम,
इनकी बातो से ये तेरा शहर नहीं लगता…
और तुझे मारने की हिमाकत करता मैं मगर,
सुना है तेरे जिस्म को कोई ज़हर नहीं लगता…
खामोशी का अपना मज़ा है,
लफ्ज़ कोई बेहरा नहीं देखा जाता…
तेरी आँखों पे काजल की गिरफ्त तो ठीक थी,
ये आंसूऔ का पहरा नहीं देखा जाता…
अपने हिस्से की खुशियां मैं लुटा दूँ तुझपर,
तेरा उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता…
दुपट्टा लिपटा था चेहरे पर फिर भी क़यामत ढहा गयी,
उसकी नजरें कहर सी थी, अब बताओ क्या करें…
और हमारे बीच उसका बेस्ट फ्रेंड भी सोया था,
वो लड़की बड़े शहर की थी, अब बताओ क्या करें…
और तोडा था उसने मरगाड़, मेरे घर में दो खड़ी है कहकर,
वो स्कूटी बहन की थी, अब बताओ क्या करें…
और मैं तुम्हारी अच्छी दोस्त हूँ, मुझे बताओ तुम सिंगल क्यों हो,
यही बात काजल प्रिया महर की थी, अब बताओ क्या करें…
और कहती कुछ ख़ास समझ नहीं शायरी की तुम्हे,
मेरी पूरी गजल बहर की थी, अब बताओ क्या करें…
और बड़े अदब से पिलाया उसने मर्ज-ऐ-दवा, रूह ने जिस्म छोड़ दिया,
शीशी ज़हर की थी, अब बताओ क्या करें…
अँधेरी रात में निकली थी तभी तो नोंचा था दरिंदो ने,
ये घटना दोपहर की थी, अब बताओ क्या करें…
और बाप ने लगा ली फांसी वकील का बयान सुनकर,
तुम्हारी लड़की ने पहल की थी, अब बताओ क्या करें…
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