Firse Jee Ke Dekhte Hai By RJ Vashishth
एक अरसे के बाद ये भी काम
करके देखते
है..
चलो आज फिर
से मुस्कुरा कर देखते है..
बैठ किनारे किसी
झील के यादो के कुछ कंकड़
फेंकते है..
चलो आज फिर
से मुस्कुरा कर देखते है..
बना के बादल
सारे गमो
का उनके
घर पे बरसात भेजते
है..
चलो आज फिर
से मुस्कुरा के देखते है..
थक गए है ऐ ज़िन्दगी
दौड़ते-दौड़ते..
अब थोड़ा घुटनो
के बल चल के देखते है..
अब थोड़ा मुस्कुरा के देखते है..
काट लिए थे जो खुद
ही अपने
हाथों से..
आज उन पंखो
को फिर
से फैला
कर देखते
है..
छोड़ दी है जो गैरो
के हाथों
में ख़ुशी
की वो डोर..
उसको अपने हाथों
में फिर
से लपेटते
है..
और खुद को लिपटते है..
सोच सोच कर बाहर मुस्कुरा लिया
.
अब ज़रा सच में समझदार
से पागल
सी हरकत
करते है..
चलो आज सच में मुस्कुरा कर देखते है...
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