Dard Kyu Hai By RJ Vashishth

Dard Kyu Hai By RJ Vashishth


Dard Kyu Hai By RJ Vashishth

 

अच्छा एक बात बताओ तुम्हे अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों है..

गर्मी के मौसम में हवा इतनी सर्द क्यों है..

इन दोनों सवालो के जवाब में तेरा ही नाम क्यों है..

तू साकी मैं पैमाना, इतना नज़दीक होने के बावजूद ये दिल अधूरा जाम क्यों है..

तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों है..

 

मालूम है कि दूरियां भी है ज़रूरी, सहनी पड़ेगी ये मज़बूरी..

ताकि कल जब वापस वही सुबह आये तो मैं और तुम करेंगे ये अधूरी बात पूरी..

पर ये नज़दीक लाने के लिए हमारे बीच अन्तरो का हिसाब क्यों है..

जिस मुकाबले का मैं हिस्सा तक नहीं उसी का मिलता ये ख़िताब क्यों है..

तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों है..

 

माना कि मांझी के घाव भरने में वक़्त लगता है..

आगे बढ़ाया हुआ हर वो कदम सख्त लगता है..

आँखों से निकलते आंसू जलता हुआ रक्त लगता है..

और किसी का इतनी जल्दी ज़िन्दगी में अपना बन जाना बड़ा बेवक़्त लगता है..

लेकिन खुदा सुनने में देर ही लगाता है इस बात का तुम्हें भ्रम क्यों है..

किसी और के नापाक इरादों कि सज़ा भरता मेरा ये कर्म क्यों है..

हर हालात में सख्ती रखते आज ये हाथ इतने नरम क्यों है..

और वापस से इश्क़ हुआ तो हुआ,

पहले खुद से फिर मुझसे इस बात को मानने में इतनी शर्म क्यों है..

तुम्हें अलविदा करहने में इतना दर्द क्यों है..

 

गर्मी के मौसम में हवा इतनी सर्द क्यों है..

इन दोनों सवालो के जवाब में तेरा ही नाम क्यों है..

तू साकी मैं पैमाना, इतना नज़दीक होने के बावजूद ये दिल अधूरा जाम क्यों है..

 



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