Bhagwan Aur Khuda By Manoj Bajpai
भगवान और खुदा,आपस में बात कर रहे थे…
मंदिर और मस्जिद के बीच,
चौराहे पर मुलाकात कर रहे थे…
कि हाथ जुड़े हुए हो या दुआ में उठे,
कोई फरक नहीं पड़ता है…
कोई मंत्र पढ़ता है,
तो कोई नमाज पढ़ता है…
इंसान को क्यों नहीं आती शरम है…
जब वो बन्दूक दिखा कर पूछता है,
कि क्या तेरा धरम है…
उस बन्दूक से निकली गोली,
ना ईद देखती है न होली…
सड़क पे बस सजती है,
बेगुनाह खून की रंगोली…
भगवान और खुदा,
आपस में बात कर रहे थे
मंदिर और मस्जिद के बीच…
चौराहे पर मुलाकात कर रहे थे…
सबको हम दोनों ने इसी मीठी से बनाया..
कोई जन्मा अम्मी की कोख से,
तो कोई माँ की गोद में रोता आया…
कौन है वोह कमब्खत,
जिसने नफरत का पाठ पढ़ाया…
किसी अकबर को कहा माँ को मार,
और अमर के हाथो अम्मी को मरवाया..
ममता का गाला घोटने वाले बेवकूफो को,
कोई समजाओ मजहब की इस जंग में,
तुमने इंसानियत को दफनाया…
भगवान और खुदा,
आपस में बात कर रहे थे…
मंदिर और मस्जिद के बीच…
चौराहे पर मुलाकात कर रहे थे…
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