Main Tumhe Pehchanne Se Inkaar Kar Dunga by Vinod Arya
किसी रोज कुछ वक्त लेक़र तुम, मुझसे मिलने आओगे…
मुझको अपना बोहोत खास बताओगे…
जमाने को दिखाओगे मेरे साथ, खुद की तस्वीरे तुम,
मुझसे मिलने के कई बहाने बनाओगे…
चलो दौबारा चले आना तुम मेरी जिंदगी में…
अंधेरा छोड मै जब चला जाऊ रोशनी में…
मगर इरादे जरा मजबूत करके आना,
इस बार एहमियत मै तुम्हे थोडी कम दूंगा…
हाँ,अपने वक्त के हिसाब मै भी खुद को बदल दूंगा…
और लूंगा एक एक पल का हिसाब, तुम्हे पता है ना,
शायर हु मै, कोई जलती गजल तुम्हारे नाम कर दुंगा…
भरी मेहफिल में, तुम्हे नीलाम कर दुंगा…
हाँ, मै तुम्हे पहचानने से इंकार कर दुंगा…
मुझे मेरी दुनिया में खुश देखकर तुम्हारी धडकने थम जायेगी…
और जब तुम्हे पता चलेगा इस खुशी की वजह कोई और है,
मेरी जान तुम्हारी जान पे बन आयेगी…
जब बैठोगे तन्हा रातों में याद करोगे वो अल्फाज जो मैने,
तुम्हारे लिए लिखे थे…
किस तरह तुम अपना बता कर किसी ओर को सुना दिया करती थी…
वो मोहब्बत जो तुमने मुझसे सीखी थी…
किस तरह किसी ओर पर लुटा दिया करते थे…
साथ बिताये उन सभी पलो को गिनवा कर, तुम माफी भी मांगोगे…
और मै उस लम्हे को नजर अंदाज कर दुंगा…
हाँ, मै तुम्हे पहचानने से इंकार कर दुंगा…
तुम से दूर होने से लेकर,खुद में खोने तक का सफर बहुत मुशकिल है…
लेकिन यकीन मानों मंजिल बहुत खुबसूरत होगी…
खुबसूरत होगा वो दिन, खुबसूरत होगी वो रात,
जो तुम्हारी यादो के वगेर गुजरेगी…
अब तुम अपने रस्ते जाओ, मुझे भटक जाने दो…
अब संभलने से डर लगता है, थोडी ठोकरे खाने दो…
अभी तो जमा करना है मुझे, एक एक सुनने वाला,
मेरे चाहने वालो की भीड लग जाने दो…
जब भीड लगेगी हजारो की…
मै ढ़ूढ़ुगा उस एक चेहरा को…
उसे पास बुला कर थोडा खास बता कर,बोहोत आम कर दुंगा…
हाँ, मै तुम्हे पहचानने से इंकार कर दुंगा…
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