Khat Saare Tere Jalane Ko Jee Chahta Hai by Pardeep Kumar

Khat Saare Tere Jalane Ko Jee Chahta Hai by Pardeep Kumar


Khat Saare Tere Jalane Ko Jee Chahta Hai by Pardeep Kumar

 

नजरो ने ही की थी खता आखिर,दिल को भी था पता आखिर…

बहते अशको से ना हो रुसवा अब,मिलनी तो थी ही सजा आखिर…

 

कही भूख से रुसवाई कही रोटी से गिला…

दोनो हुये हाजिर तो वक्त ना मिला…

हँस रही थी झोपड़ी मुफलिसी मे भी,

तन्हा खड़ा रोता रहा वो आलिशां किला…

कत्ल कर दिया था जिसने मुझे कभी,

वो शख्स मेरी तलाश मे आज फिर से है चला…

उसने भी डाला फूल था इक मेरी कब्र पर,

मर के ही सही उसके हाथ से गुलाब तो मिला…

खुशियाँ तो मेरे घर का पता जानती नही,

गम तो अपना यार है खुद खुद आयेगा चला…

आईने ने कहा महबूब तेरा मेरे जैसा है,

है सामने तो साथ है बाद देगा वो भुला…

 

कभी कभी मर जाने को जी चाहता है….

फिर याद आती है माँ घर जाने को जी चाहता है…

उम्र सारे काट दी हमने आँखो मे अश्क लिये,

मौत जब आयी तो मुस्कुराने को जी चाहता है…

तेरी यादो की सर्दी बड़ती ही जा रही है,

खत सारे तेरे आज जलाने को जी चाहता है…

 


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