Wo Kuch Alag Hi Tha By RJ Vashishth

Wo Kuch Alag Hi Tha By RJ Vashishth


Wo Kuch Alag Hi Tha By RJ Vashishth

 

वो कुछ अलग ही था..

प्यार चाहता भी था और नहीं भी चाहता था..

बड़ा अतरंगी सा, ना जाने किसकी धुन में यहाँ से वहां भटकता सा..

वो कुछ अलग ही था..

 

इतना अलग कि जब कोई उसको कहते कि वो उससे प्यार करती है तो झट से मान जाता..

खो जाता उन बाहों में, बहकती निगाहों में..

और फिर उन्हीं निगाहों से आंसू कि तरह बह जाता..

वो कुछ अलग ही था..

 

इतना अलग कि जब कोई उसको कहता कि मैं तुमको खोना नहीं चाहती, मैं तुम्हे ज़िन्दगी भर अपने पास रखना चाहती हूँ..

तो वो खुद ही अचानक से गुम हो जाता ये देखने के लिए कि उनके कहे हुए शब्द कितने सच्चे है..

और आखिर में अकेला हो जाता..

पर खुद को ढूंढना ही तो प्यार है ना फिर वो किसी और में हो या खुद में हो..

यही सोच के प्यार कि आज़माइश में खुद को फिर से खर्च करता है..

और फिर से खो जाता उन बांहों में, बहकती हुई निगाहों में..

वो कुछ अलग ही था..

 

प्यार चाहता भी था और नहीं भी चाहता था..

वो कुछ अलग ही था..




Comments