Phir Rona Yaad Aaya by Manjeet Singh
जीते जीते कोई भी हमनशी ना हुआ…
मौत आयी युं मौत पर भी यकी ना हुआ…
कितनी मिट्टी फेंकी चेहरे पर उसके,
पर वो आसमां था कभी जमीं ना हुआ…
होने को ना था कुछ तो उनका होना याद आया…
फिर से भिगा ली पलके, फिर रोना याद आया…
इक दिन मेरे बिस्तर पर गम युं आकर बैठा,
ना नींद उसको आयी, ना हमें सोना याद आया…
इश्क के मौसम में दिल भी दिया था उनको,
ना संभाल कर उन्होने रखा, ना खोना याद आया…
फिर तन्हाई मे छुपकर सिगरेट जला ली हमने,
फिर से वो बचपन का खिलौना याद आया…
है दिल की इक बिमारी कुछ भूलता नही ये,
माझी को भूलने बैठा दोगुना याद आया…
ख्वाव सजाकर हम जब चलने लगते है…
मील के पत्थर उलटे चलने लगते है…
खुशियाँ जब भी आँखो मे छा जाती है,
हम तब उठ कर आँखे मलने लगते है…
गैरो की आँखो मे जब छा जाते है,
हम से फिर कुछ अपने जलने लगते है…
हम जब छत पर तुम पर गजले लिखते है,
ये चाँद सितारे हमको खलने लगते है…
उनकी बांहो में जब गिरने लगती हो,
जख्म पुराने वापिस छिलने लगते है…
जब भूल भुला कर अपनी सोना चाहते है,
फिर माझी के दरवाजे खुलने लगते है…
जुल्फो का साया तेरी जब छाता है,
सब कायनात के सूरज डलने लगते है…
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