Chori Hui Kitab by Nidhi Narwal
यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था…
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया…
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं,
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था…
आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा…
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर,
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा…
क्यू कि वो किताब मेरी थी…
यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था…
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया…
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं,
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था….
आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा…
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर,
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा…
क्यू कि वो किताब मेरी थी…
उस किताब का 3 4 शेफा मेने हल्का सा फाड़ रखा था…
उसने ओर शेफे फाड़ दिये होंगे पर,
उस 3 4 शेफे के फटे हुए टुकड़े मेरे पास थे,
शाबित क्या करना था किताब मेरी थी…
उस किताब के अंदर रखे हुए कुछ कोरे पन्ने,
मे आँगन के फूल की एक पंखुर,
ओर एक बोरियत मे बनाये हुआ स्केच उसने फ़ेक दिये होंगे…
ताकि यह पता ना लगे किसी को कि वो किताब मेरी थी…
एक दिन उस चोर को पकड़ लिया मैंने,
मैंने उससे कहा सुनो यह किताब मेरी हैं…
उसने किताब पर अपना नाम दिखाया ओर,
फटे हुए शेफे दिखाये…
ओर बोला नहीं, मैंने कहा सुनो,
सुनो धूल जम गई है इस पर,
तुम्हारी होती तो यह हसर ना होता इसका,
वो चुप हो गया पर माना नहीं की वो किताब मेरी नहीं है…
आज के दिन जब मैं तुम्हें किसी ओर की बाहो मे देखती हू…
तो तुम्हारी मोहब्बत मुझे उस चोरी हुई किताब सी लगती हैं…
ज़िन्दगी से आखिरी मुलाकात कुछ यूँ हो,
कि पहली मुलाकात का अफ़सोस ना रहे…
जब जिंदगी हंसकर अलविदा कहने लगे,
तो उस अलविदा का रूह पर बोझ ना रहे…
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