Shadi Ke Baad Wo Mera Naam Bhul Gyi by Kanha Kamboj
जो कभी ज़हन तक में तस्लीम था वो नज़रों तक से गिर गया है…
वो बता रहा है हद में रहो जो अपनी हद से गुज़र गया है…
और हिफाज़त दुश्मनों से तो कर लेते,
कोई अपना दुश्मनी पे उतर गया है…
मेरे हक़ में जो दलीलें थी फ़िज़ूल हैं अब,
मेरा गवाह गवाही देने से मुकर गया है…
मेरी फँसी मुक़्क़र्र होने पर वो मुस्कुराई बहोत,
ना जाने कौन सा वेहम उसके सर चढ़ गया है…
तेरे जाने के बाद जीने की तम्मना तो यूँ भी ना थी,
अरे वो शक़्स तो मेरे हक़ में फ़ैसला कर गया है…
और किसी नें मेहबूब की खतों में है जलया खुद को,
अरे ये कान्हा तो नहीं जो कल मर गया है….
जब पुकारना हो मुझे तो मेरा नाम भूल जाता है…
उसे इश्क़ तो आता है पर करना भूल जाता है…
और उसे कह दो की यूँ मुस्कुरा के ना देखे मुझे,
ये दिल पागल है धड़कना भूल जाता है…
तूने रिश्ता तोडा है मजबूरी होगी मैं मानता हूँ…
मुझे तो निभाने दे मैं तुझसे भला क्या मांगता हूँ…
और दर्द में देखकर तू मुझे मुस्कुरा रही है,
मैं कितना पागल हूँ तू हंसती रहे यही दुआ मांगता हूँ…
खुद से ही खुद को बदनाम करते है…
चलो उनका काम आसान करते है…
और चुबने लगी है ये धड़कनो की आहटें मुझको,
चलो इन्हे रोकने का इंतज़ाम करते है…
और करके यूँ बेइंतहा ज़ुल्म मुझपर,
कहती है चलो आज तुम्हे माफ़ करते है…
और धूल जमी थी खुद के चेहरे पर,
कहते है की चलो आइना साफ़ करते है…
वक़्त जाया ना कर मुझको पहचानने में…
तू खुद एक कहानी बन जायेगा मेरी हकीकत जानने में…
और चल दिए बेपरवाह देखने गहराई मेरे दर्द की,
इतना गहरा हूँ की जमाना निकल जायेगा मेरी गहराई नापने में…
उसके जज़्बात मेरी हिचकियों से ये कहने लगे है…
कि अभी वक़्त लगेगा तुम्हारी याद आने में,
आजकल वो सुर्ख़ियों में रहने लगे है…
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