Maaf Karna O Modern Nari by Monika Singh
औरत जो आज खुद को औरत कहलाने से कतराती है…
यूँ तो मर्दों से कम नहीं आंकती खुद को,
पर हाँ जरूरत पड़ने पर अबला भी बन जाती है…
बस हो या मेट्रो, इन्हे महिला आरक्षित सीट चाहिए…
मिले तो ठीक वरना नहीं किसी की भीख चाहिए…
स्वाभिमान इन्हे अपना हद से ज्यादा प्यारा है…
कोई सिर्फ लड़की समझ मदद करे, ना ना बिलकुल ना गंवारा है…
फिर जब ये महिला आरक्षण की लाइन में सबसे पहले नजर आती है…
बगैर जरूरत भी जब सारे फायदे उठाती है…
माफ़ करना ऐ मॉडर्न नारी, मुझे तेरी ये बात समझ ना आती है…
लड़कों के कंधे से कन्धा मिलाकर चलना जानती है…
सिगरेट शराब जैसे शौक में भी खुद को पीछे ना मानती है…
किसी प्रिंस की प्रिंसेज़ बनना अब इन्हे भाता नहीं है…
कमाती है इतना कि एडजस्ट करना आता नहीं है…
हर चीज में बराबरी का अधिकार जताती है…
फिर जब इन्हे फुल्ली ड्रेसिंग दोस्तों के बीच बहन जी बनाती है…
फैशन के नाम पर फिर ना दिखने वाली अपनी हर चीज दिखाती है…
माफ़ करना ऐ मॉडर्न नारी, मुझे तेरी ये बात समझ ना आती है…
ऑफिस में तो मैं भी काम करती हूँ, चलो घर की जिम्मेदारियां भी बाँट लेते है…
कुछ काम मैं करुँगी कुछ तुम्हारे नाम कर देते है….
अकेले घर मैनेज करना आसान नहीं, ये अच्छे से जानती है…
फिर भी एक हाउसवाइफ को अपने से कम आंकती है…
आज स्कूटर से लेके ऐरोप्लेन ये सब चलाती है…
छू रही है आसमान और बच्चों की तो सुपर मॉम कहलाती है…
पर जब बूढ़े माँ बाप की जिम्मेदारी इन्हे खुदपर बोझ नजर आती है…
उनकी चिंता उनकी परवाह इनके लिए पाबन्दी बन जाती है…
माफ़ करना ऐ मॉडर्न नारी, मुझे तेरी ये बात समझ ना आती है…
हजारों कानून बने हिफाज़त में तुम्हारी,
पर जरुरी तो नहीं कि हर बार किसी की नियत ही गलत हो…
तुम्हारी सोच में भी गलती हो सकती है, या हो सकता है समझने का फ़र्क़ हो,
बगैर सोचे समझे जब किसी पर सवाल उठाती है…
जाने अनजाने जब भरी भीड़ में किसी पर इलज़ाम लगाती है…
फ्रीडम के नाम पर जब एक साथ कइयों को घुमाती है….
और कयामत तो तब होती है जब तुम्हारी सो कोल्ड डिक्शनरी,
उन सबकों तुम्हारा जस्ट फ्रेंड बताती है…
तेरी ये दोहरी बातें तुझपर ही सवाल उठाती है…
माफ़ करना ऐ मॉडर्न नारी, मुझे तेरी ये बात समझ ना आती है…
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