Tumhaari Yaad Mein Sharaab Bhi Meethi Lag Rahi Hai by Kanha Kamboj

Tumhaari Yaad Mein Sharaab Bhi Meethi Lag Rahi Hai by Kanha Kamboj

Tumhaari Yaad Mein Sharaab Bhi Meethi Lag Rahi Hai by Kanha Kamboj

सांसे चलती है मगर बदन में हरकत नहीं होती,

ये खुद को मार कर जीना कैसा है

और ये शराब मुझे मीठी लगती है,

ये बताओ ज़हर पीना कैसा है

और इस सर्द रात में ना जाने वो किसका जिस्म ओढ़ रही है,

इस शर्दी के मौसम में मुझे पसीना कैसा है

 

सब कुछ बताया जाए तो अच्छा रहेगा

अब कुछ छुपाया जाए तो अच्छा रहेगा

और अदालत सजी है तेरे मोह्हल्ले में तो कोई गिला नहीं,

गवाह मेरे मोहल्ले से भी बुलाये जाए तो अच्छा रहेगा

और मुझमे तोहमते लगी है तेरे मोहल्ले से गुजरने की

रास्ता बाजार जाने का तेरा भी बताया जाए तो अच्छा रहेगा

और उसके दिल से ही नहीं तील से भी बहुत कत्लेआम हुए हैं,

रक़ीब को दिल से पहले टिल से वाकिफ करा दिया जाये तो अच्छा रहेगा

 

जो कभी ज़हन तक में तस्लीम था वो नज़रों तक से गिर गया है

वो बता रहा है हद में रहो जो अपनी हद से गुज़र गया है

और हिफाज़त दुश्मनों से तो कर लेते,

कोई अपना दुश्मनी पे उतर गया है

मेरे हक़ में जो दलीलें थी फ़िज़ूल हैं अब,

मेरा गवाह गवाही देने से मुकर गया है

मेरी फँसी मुक़्क़र्र होने पर वो मुस्कुराई बहोत,

ना जाने कौन सा वेहम उसके सर चढ़ गया है

तेरे जाने के बाद जीने की तम्मना तो यूँ भी ना थी,

अरे वो शक़्स तो मेरे हक़ में फ़ैसला कर गया है

और किसी नें मेहबूब की खतों में है जलया खुद को,

अरे ये कान्हा तो नहीं जो कल मर गया है




Comments