Kaun Ho Tum by Sangita Yaduvanshi
कुछ पूछना है तुमसे,
कौन हो तुम? जो मेरे ख्वाबों में आते हो
हर रोज कच्ची नींद में आशना बनाता हूं तुम्हें…
वो सुबह का ख्वाब हो क्या?
जब लोग पूछते हैं हाल-ए-दिल मेरा,
तो उस खामोशी का तुम जवाब हो क्या?
जब मुड़ के देखती हो मुझे,
तो एक पल में पूरी जिंदगी जी लेता हूं मैं…
वही आखरी ख़्याल हो क्या?
उस दिन टकरा गई थी तुम धड़कनों से मेरी,
अब भी सांसो में मौजूद है वो खुशबू तेरी,
और पूछती है तुम से कोई गुलाब हो क्या?
अपने आंखों में न जाने कितने किस्से सजाए बैठी हो,
मशहूर हो जमाने में शायरी की तरह पूछता हूं तुमसे…
कोई ग़ालिब की किताब हो क्या?
न जाने कितने सरफरोश हुए,
ये रांझे, ये मजनू तुम्हारे इश्क में,
ये जो आंखों में जो छुपा है,
वो उनकी बर्बादी का राज है क्या?
जानता हूं बह जाऊंगा एक दिन मोहब्बत के समंदर में कहीं,
क्या तुम वहीं सैलाब हो क्या?
क्या तुम वहीं सैलाब हो क्या?
पूछता हूं तुमसे मेरा सुबह का ख्वाब हो क्या?
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