Ek Ladki Hai Jo Mujhe Mujhse Jyada Janti Hai by Amandeep Singh

Ek Ladki Hai Jo Mujhe Mujhse Jyada Janti Hai by Amandeep Singh

Ek Ladki Hai Jo Mujhe Mujhse Jyada Janti Hai by Amandeep Singh

Jo Lafaz Juban Tak Nahin Aate Mere,
Wo Unhe Bhi Pehchanti Hai..
Ek Ladki Hai Jo Mujhe Mujhse Jayada Janti Hai..


जो लफ्ज़ जुबां तक नहीं आते मेरे,
वो उन्हें भी पहचानती है..
एक लड़की है जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है..

सूझ बुझ में मुझसे आगे है..
वो थम जाती है जब दुनिया भागे है..
मशरूफ रहती है ना जाने किस गांव में त्योहारों में..
पायल पहनती है वो अपने पांवो में..
मेरी कहानियों को बड़े इत्मीनान से सुनती है..
मेरे शब्दों पर पलके रख शायद वो भी ख्वाब बुनती है..
कुछ छिपाता हूँ उससे तो ना जाने कैसे जान जाती है..
हर बार, हर बार मेरा मुखौटा हटा मेरी सच्चाई पहचान जाती है..
उसे रास्तों की परवाह नहीं है वो खुद को लहर मानती है..
एक लड़की है जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है..

मैं ना सुनूँ तो गुस्से में आती है..
मैं सुन लूँ तो मुस्कुराती है..
मैं उदास हूँ तो समझाती है..
मैं चुप हूँ तो सहलाती है..
मैं खफा हूँ तो ना ही मुझे मनाती है..
मेरी नाकामियों पर भी अपना हक़ जताती है..
थोड़ी बेसुरी है पर गाकर सुनाती है..
मैं परेशान ना करूँ तो परेशान हो जाती है..
इतनी तिलिस्मानी होकर भी मुझे वो अपना दोस्त मानती है..
एक लड़की है जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है..

हाँ, हाँ मैं उससे मजाक बेहद करता हूँ..
पर उसे खोने से भी डरता हूँ..
उसकी नापसंद भी मुझे पसंद है..
उसकी आवारगी में मेरी आज़ादी बंद है..
मैं शब्द रखता हूँ, वो जज्बात उठाती है..
मैं शब्द रखता हूँ, वो जज्बात उठाती है..
मेरे कोरे कागज़ पर किसी कविता सी उतर जाती है..
पर पूरी कविता में भी वो कहाँ खरी उतरती है..
रोज़ रोज़ भला जन्नत से कहाँ ऐसी परी उतरती है..
मैं उम्मीद ना तोड़ दूँ, इसलिए मेरा हाथ थामती है..
मुझसे ज्यादा मेरे सपनो को वो हकीकत मानती है..
उसे रास्तों की परवाह नहीं है वो खुद को लहर मानती है..
एक लड़की है जो मुझे मुझसे ज्यादा जानती है..

 


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