Dear Stree By RJ Vashishth

Dear Stree By RJ Vashishth


Dear Stree By RJ Vashishth

 

तुम बड़ी बुज़दिल हो..

हो एक स्त्री और हमसे मुकाबला करने चली हो..

तुम बड़ी बुज़दिल हो..

बात- बात पर रो लेती हो..

छिपकली देख कर घर सर पर ले लेती हो..

दर्द कैसा भी राई जैसा क्यों ना हो दिखाती पहाड़ जितना हो..

हो एक स्त्री और हमसे मुकाबला करने चली हो..

बड़ी बुज़दिल हो..

कंधे से कंधे मिलाना है..

हमसे आगे निकलना है..

दुनिया को कुछ करके दिखाना है..

हमें हराना है..

कौन से ख्याली पुलाव पका रही हो..

Kitchen में जो पक रहा है ना उसपे ध्यान दो..

स्त्री हो स्त्री हमसे मुकाबला करने चली हो..

बड़ी बुज़दिल हो..

और ऐसी सोच रखने वाले उससे भी ज़्यादा बुज़दिल..

Dear स्त्री, तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि तुम हमसे मुकाबला करोगी..

मुकाबला बराबरी वालो से किया जाता है..

और तुम तो हमसे बहुत आगे हो..

हां तुम जानती नहीं ये बात अलग है..

पर तुम हमसे बहुत आगे हो..

फिर भी क्यों हमसे मुकाबला करने चली हो..

बात- बात पे रोके दिल को हल्का कर लेती हो..

जीने का सही अंदाज़ सिखाती हो..

महीने के वो चार दिन का Pain हो या फिर जान लेकर भी जान ना ले वो Labour Pain हो..

दोनों को बड़ी आसानी से निगल लेती हो..

मतलब, कैसे कर लेती हो..

फिर भी हमसे मुकाबला करने चली हो..

और कंधे से कंधे मिलाना ही क्यों जब तुम हमसे ऊपर हो..

हमारे साथ चलना ही क्यों जब तुम हमसे Already आगे हो..

घर का पुलाव हो या Office का Presentation ..

दोनों को बड़ा मसालेदार बनाती हो..

घर में बच्चा हो या फिर Boss का बचपना हो..

दोनों को दस हाथो से संभाल लेती हो..

कैसे कर लेती हो..

और फिर भी हमसे मुकाबला करने चली हो..

Dear स्त्री तुम हमसे मुकाबला क्यों कर रही हो..

तुम खुद ही में मुकम्मल हो..

And Thank You कि तुम हो..




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