Phir Kabhi AND Dard Ka Samandar by Sugandha Gupta

Phir Kabhi AND Dard Ka Samandar by Sugandha Gupta

Phir Kabhi AND Dard Ka Samandar by Sugandha Gupta

कई मुस्कुराते हुए चेहरे दर्द लिए बैठे है महफ़िल में,
तू नाराज़ ना हो बेवफाई सच्ची मोहब्बत किये बैठे है महफ़िल में।

लिखना तो बहुत कुछ है उसकी भोली सी मुस्कान पे,
उसकी नशीली आँखों पे,
पर आज फुर्सत नहीं है दुनिया के सवालों से।
कि लिखूंगी, कहूँगी और पिरो लुंगी तुम्हे खुद में कहीं,
फिर कभी
और कह दूंगी तुमसे हर वो बात जो अब तक कहा नहीं।
पर फिर कभी….

कि खोल दूंगी वो राज़,
जिसका इंतज़ार भी तुम हो और इकरार भी तुम हो।
पर फिर कभी….

कि अभी खोयी हूँ दुनिया के ग़मों में मैं,
अभी पाया है मैंने खुद को कहीं,
जोड़े है खुद के बिखरे हुए टुकड़े मैंने,
कि अभी मशगूल हूँ खुद को समेटने में मैं।
कि सजाऊंगी, संवारूंगी और पिरो लुंगी तुम्हे खुद में कहीं,
पर फिर कभी, पर फिर कभी

लिखूंगी कसीदे तुम पे कई हजार,
पर फिर कभी, फिर कभी
लिखना तो बहुत कुछ है तुम पे,
पर लिखूंगी तुमपे, फिर कभी

कि कुछ बचा नहीं लिखने को,
कोई नई कहानी पुराने सलीके से लिखते है।
तुम अपनी और हम अपनी रवानी लिखते है।
जो वक़्त गुजर गया उस वक़्त से दो यादें लिखते है।
तुम अपनी जवानी हम अपना बचपना लिखते है।
तुमसे हुयी जो कभी वो पहली मुलाकात लिखते है।
चलो नई कहानी पुराने सलीके से लिखते है।

हम पुरानी किताबो में छुपे गुलाब लिखते है।
तुम चाय की वो पहली चुस्की लिखो।
कि बचा नहीं कुछ लिखने को,
हम अपने रिश्ते की नई कहानी लिखते है।
कि तुम हमारे दिल्ली की सुबह,
और हम तुम्हारे बनारस की शाम लिखते है।


दर्द का समंदर
दर्द का समंदर लिए फिरते है।
हम बेवफाई का वो मंजर लिए फिरते है।
खिलते फूलो को तो बहुत देखा है,
आजकल हम सूखे पत्तो से मिलते है।
नहीं आता है चैन अब वफाओ में,
हम बेवफाई का वो सुकून भरा बवंडर लिए फिरते है।
कब कोई आता है अकेलेपन का साथी बनकर,
हम हर रोज एक नए चेहरे के साथ मिलते है।
नहीं रुकते अब उसके नाम से हम,
अपने ही नाम की खोज में हर रोज निकलते है।
दर्द का समंदर लिए फिरते है।
हम बेवफाई का वो मंजर लिए फिरते है।
यूँ ही तो नहीं हम पत्थर बनते है।
आंसुओ से हर जख्म को सींते है।
क्या मिला इस ज़माने में आशिकी करके,
हम आज भी अपनी माँ की गोद में सिर रखके रोते है।



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