Meri Mayyat Par Bhi Kandhe Nahi Milenge By Lovely Sharma
आज मेरे सीने में कुछ बेचैनी सी आई है..
उठके देखा चौखट पे मेरी मौत आई है..
औकात नहीं मेरी चार दीवारों की,
मैं तारो की चादर ओढ़ के सोता हूँ..
बेबसी के आलम में आँखों में सपने मरोड़ के सोता हूँ..
भूख में झूटन, बदन पर मेरे सिर्फ उतरन आती है..
मेरी किस्मत में किस्मत से दो वक़्त की रोटी आती है..
मर तो रहा हूँ मैं ज़िन्दगी भर,
अभी मैं थोड़ा सा जीना चाहता हूँ..
अंधेरो में बेचैनी बहुत कमा ली जनाब,
मैं थोड़ा सा रातो में सुकून चाहता हूँ..
मेरी मय्यत पर तो कंधे भी नहीं मिलेंगे,
मैं अपना कफ़न कमाना चाहता हूँ..
मुर्दो को तो कब्र भी खरीद कर मिलती है,
मैं शमशान का खर्च उठाना चाहता हूँ..
जुगनू चमकाते है दिवाली पर मेरा घर,
मैं थोड़ी सी रौशनी चाहता हूँ..
दीया मैं खुद बना लूंगा,
मैं उसमे लौ जगाना चाहता हूँ..
मरता तो रहा हूँ मैं ज़िन्दगी भर,
मैं अब थोड़ा सा जीना चाहता हूँ..
धर्म नहीं होता हमारा हम इंसानियत के भरोसे चलते है..
मस्जिद में अल्लाह, मंदिर में राम के भरोसे चलते है..
दया बहुत कमा ली यारा,
मैं थोड़ा सा कर्म कमाना चाहता हूँ..
मरता तो रहा हूँ मैं ज़िन्दगी भर,
अब मैं थोड़ा सा जीना चाहता हूँ..
मैं अपने माथे की लकीरे बढ़ा कर,
अपने हाथो की लकीरे बदलना चाहता हूँ..
किस्मत बनाई मेरी जिन फ़रिश्तो ने,
उनकी शिकायत उनके फ़रिश्तो से करना चाहता हूँ..
मरता तो रहा हूँ मैं ज़िन्दगी भर,
अब मैं थोड़ा सा जीना चाहता हूँ..
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