Maa Bata Mujhe By Nidhi Narwal

Maa Bata Mujhe By Nidhi Narwal


Maa Bata Mujhe By Nidhi Narwal


माँ तू कमजोर तो नहीं है…
ये मैं जानती हूँ…
पर मुझे बात करनी है…
तुझसे और बात दरअसल ये है…

कि मैं यह चाहती हूँ…
कि आज तू बात करे मुझसे…
तो ठीक है ना तूने खाना खाया दवाई ली घर पर सब कैसे हैं…
अच्छा शहर का मौसम तेरी तबीयत सब कैसा है…
तू ठीक है ना मेरी याद आती है…
मैं घर आऊँ ये सब नहीं जानना मुझे…
ईन सब के जबाब तो मुझे पहले से पता है
क्युकी बर्षों से ये सवाल और इनके जबाब बदले नहीं हैं…

मुझे तुझसे वो जानना हैं…
जो तेरी आखों के बगल मे पड़े,
नील चीख़ चीख कर मुझे बताता हैं…
बच्ची नहीं हूँ माँ बड़ी हो गयीं हू…

कहानिया सुनकर नींद नहीं आती…
बता वो सच्चाई जो तेरे होठों,
पर बर्फ के जेसी ज़मी रखी है…
बता वो सब मुझे जिसका शोर तेरी,
चुपी से साफ़ साफ़ सुनाई देती है…

बता वो किस्सा जो तेरी पीठ पर,
मुझे हर बार दिखाई देता है…
तेरे सुर्ख गालों पर मेहरून और नीले धब्बे है….

जो घूंघट के पीछे तूने सालों तक रखे है…
मगर मुझे नजर आते हैं…
माँ तू कितनी भोली हैं…
तेरी चूडिय़ां तेरी कलाई की चोट को छुपा नहीं पाती…
तेरी हालत सब बताती है…

तू खुद बता क्यू नहीं पाती के,
तेरे फर्ज के बदले कौन से किस किस्म के तोहफे है…
ये तेरी जीस्त की आखिर कौन सी किताब के सफे हैं…

ये मुझे बता मैं वो किताब फाड़कर कहीं फेंक दूंगी
ये तोहफे देने वाले को,
मेरा वादा है तुझसे तोहफे देने वाले को सूत समित वापिस दूंगी
माँ मैं तेरी बेटी हूं इतना तो काबिल तूने बनाया है मुझे
कि पैर मे चुभा काटा खुद निकाल फेंक सुकू
गुनाहगारों और गुनाह के मुह पर एक तमाचा टेक सकू
माँ बता मुझे माथे पर सिंदूर की जगह ये खून क्यू रखा है तेरा

इसे रखने वाला सच सच बता पिता है मेरा,
मुझे शर्म नहीं आएगी…
अरे कोई मोहब्बत का इज़हार है क्या…
तू बोल तो सही तू बोलती क्यू नहीं,
माँ तेरे हकों का इतबार है क्या…
मैं कमजोर नहीं हू…
मैं कमजोर बिल्कुल नहीं हू माँ…
मगर मुझसे बात कर,
वरना शायदकमजोर पड़ जाऊँ…

 


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