अब रातों से नहीं, अब मुझे ख्वाबों से डर लगता है..
कहीं ना कहीं तेरा उन ख्वाबों में आना और मुझे एहसास कराना,
कि तू भी मुझे कितना प्यार करती है..
अब मुझे तेरे इन सब झूठे दिलासों से डर लगता है....
अब तुझे भूलने से नहीं, तुझे याद करने से डर लगता है..
तेरे साथ बिताया हर वो पल, हर वो लम्हा,
जिनमे सिर्फ तू ही तू बसती थी..
अब मुझे उन यादों को याद करने से डर लगता है....
अब अंधेरो से नहीं, अब मुझे उजालो से डर लगता है..
और अगर कहीं उस उजाले में तू नजर आ गयी,
तो तेरा सामना कैसे करूंगा, तुझसे नजरे कैसे मिलाऊँगा..
अब मुझे ये सोचकर डर लगता है....
अब मुझे तुझसे नहीं, तेरी बातों से डर लगता है..
तेरी हर वो बात जिनमे तू सिर्फ मेरा ही जिक्र किया करती थी,
और हर वक़्त मेरी ही फ़िक्र किया करती थी, क्या वो सब बातें झूठी थी..
अब मुझे उन बातों को सोचकर डर लगता है....
अब नफरत से नहीं, अब मुझे प्यार से डर लगता है..
किसी के साथ कुछ हसीन पल बिताना, कुछ प्यार कि बातें करना,
और उसे यकीन दिलाना कि तुम उसके लिए कितने स्पेशल हो,
और फिर बीच राह में बिना बात के छोड़कर चले जाना,
क्या यही प्यार होता है, अब मुझे ऐसे प्यार से डर लगता है....
अब मुझे अंजाम से नहीं, आगाज से डर लगता है..
मैं मानता हूँ कि वो मुझे छोड़कर चली गयी..
पर ये जरूरी तो नहीं कि वो वापस नहीं आएगी..
वो आएगी और वापस दोबारा छोड़कर चली जाएगी..
उसके यूँ बार बार छोड़कर चले जाने से,
अब मुझे किसी पर विश्वास करने से भी डर लगता है....
अब मुझे किसी के जाने से नहीं, किसी के आने से डर लगता है..
फिर से वही सारी पुरानी बातें, फिर से वही सारी कसमें,
फिर से वही वादे, फिर से वही सपने,
और फिर से उन सपनो के टूट जाने से अब मुझे डर लगता है....
अब अकेले से नहीं, अब मुझे तेरे साथ से डर लगता है..
अब तू वापस आ भी जाएगी और अपनी गलती मान भी लेगी..
हाँ मैं तुझे माफ़ भी कर दूंगा लेकिन,
इस बात कि क्या गारंटी है कि तू दोबारा छोड़कर नहीं जाएगी..
अब मुझे इस बात से भी डर लगता है....
अब दुनिया से नहीं, अब मुझे खुद से डर लगता है..
कहीं ये दिल दोबारा प्यार ना कर बैठे..
दोबारा किसी से इजहार ना कर बैठे..
क्योंकि अब दोबारा ये सब मैं सह नहीं पाउँगा..
अब तो मुझे किसी लड़की से बात करने से भी डर लगता है....
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