Mere Kuch Sawal Hai by Zakir Khan

Mere Kuch Sawal Hai by Zakir Khan

Mere Kuch Sawal Hai by Zakir Khan

Mere Kuch Sawal Hai Jo Sirf Qayamat Ke Rozz Puchunga Tumse..
Kyonki Uske Pehle Tumhari Aur Meri baat Ho,
Is Layak Nahin Ho Tum..

मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे,
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके,
इस लायक नहीं हो तुम।

मैं जानना चाहता हूँ,
क्या रकीब के साथ भी चलते हुए शाम को,
यूं ही बेखयाली में उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है तुम्हारा

क्या अपनी छोटी ऊँगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो?
क्या वैसे ही जैसे मेरा थामा करती थीं…

क्या बता दीं बचपन की सारी कहानियां तुमने उसको,
जैसे मुझको रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने..

क्या तुमने बताया उसको कि पांच के आगे की
हिंदी की गिनती आती नहीं तुमको…

वो सारी तस्वीरें जो तुम्हारे पापा के साथ,
तुम्हारे भाई के साथ की थी, जिनमे तुम बड़ी प्यारी लगीं,
क्या उसे भी दिखा दी तुमने…

ये कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे,
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके,
इस लायक नहीं हो तुम।

मैं पूंछना चाहता हूँ कि
क्या वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको,
तो सीढ़ियों पर आँखें मीच कर क्या मेरी ही तरह
उसके भी सामने माथा आगे कर देती हो तुम वैसे ही,
जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं..

सर्द रातों में, बंद कमरों में क्या वो भी मेरी तरह
तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियों से
हर्फ़ दर हर्फ़ खुद का नाम गोदता है,
और क्या तुम भी अक्षर अक्षर पहचानने की कोशिश करती हो,
जैसे मेरे साथ किया करती थीं..

मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे,
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके,
इस लायक नहीं हो तुम।



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