Kitni Badal Gayi Hun Main by Goonj Chand

Kitni Badal Gayi Hun Main by Goonj Chand

Kitni Badal Gayi Hun Main by Goonj Chand

कुछ रिश्तो को सँभालते - सँभालते बिखर गयी हूँ मैं..
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं

मैं वो लड़की थी जो अपनी मर्ज़ी की मालिक हुआ करती थी
हज़ारो लड़को की बेहेस में भी सबसे आगे हुआ करती थी
पर आज एक इंसान की वजह से कितनी सहम गयी हूँ मैं
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं

कपड़े किसी और की पसंद के पहनू सवाल ही पैदा नहीं होता था..
और इस बात पे मुझे समझाना किसी के बस में नहीं होता था
पर आज किसी की खुशी की लिए अपनी इच्छाओ का दम घटना भी सिख गयी हूँ मैं
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं

जहा कभी मेरे पास लोगो को बेवजह हँसाने के Ideas हुआ करते थे..
आज वह मेरे पास मेरी तन्हाई और मेरे खोकले जज़्बात है..
नहीं समझ पता कोई मुझे आजकल कियुँकि सब सुनते सिर्फ मेरे अलफ़ाज़ है
वर्षो पुराने वीरान पड़े खंडर की तरह सुनसान सी होगयी हूँ मैं
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं

कहने को तो सब अपने है पर अपना कोई दीखता नहीं
मतलब के है रिश्ते सरे बे-मतलब कोई मिलता नहीं
किसी के बदलने की उम्मीद में उस जैसी ही हो गयी हूँ मैं..
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं

कुछ रिश्तो को सँभालते - सँभालते बिखर गयी हूँ मैं..
देखो कितनी बदल गयी हूँ मैं



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