Ek Roz Kitaab Se Phool Mila, Bilkul Mujh Jaisi Hi Halat Me..
अमूमन ऐसा होता है कि जब हम कोई पुरानी किताब उठाते है और उसे खोलते है तो अक्सर हमें उसमे एक दबी हुई मोहब्बत मिलती है, वो दबी हुई मोहब्बत जिसे गुले सुर्ख कहा गया है, गुलाब का फूल जोकि प्रेम की निशानी है मोहब्बत का प्रतीक है, उसकी अपनी एक दास्तां है, अपनी एक कहानी है, उस कहानी को आज मैं बयां करने जा रहा हूँ. आप सबके सामने इस कहानी को पेश कर रहा हूँ, आप सब की तवज्जो चाहूंगा..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
तन्हा सा पर हँसता हुआ, फ़ना हो गया मोहब्बत में..
लोग कहते है मुरझाया है, जख़्म बड़े ही गहरे है..
लेकिन ध्यान से देखो तो सूफ़ी हुआ है, इश्क़ की खुशबू बिखेरे है..
अरे जख्मों से जिसके खुशबू आये, सोचो वो मरा होगा कैसी राहत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
ना जाने कितनी पीड़ाएँ सही, दर्द का भी कोई पार नहीं..
ये इश्क़ शायद एकतरफा था, था जिसमें कोई व्यापार नहीं..
अरे क्या कमाल बंदगी है उसकी, माशूक है जिसकी इबादत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
दर्द जब हद से गुजरा एक रोज़, तो दर्द में ही दवा मिली..
घुटन हुई दो पन्नो के बीच, तो शायरी की हवा मिली..
कांटे हो बदन पर भले ही, लेकिन उम्र गुजरी है शहादत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
जिन हाथों ने कुचला इसको, वो हाथ भी खुशबू से महक उठे..
क्या है कोई इस दुनिया में कहीं, जो यूँ मुरझाकर भी चमक उठे..
सदियों से ये पाक मोहब्बत, दफ़न होती है इसी रिवायत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
लेकिन इस फूल को कोई मलाल नहीं है, जीवन इश्क़ पर लुटाया है..
क्या हस्ती है उस आशिक की, जिसने काँटों को इश्क़ सिखाया है..
अरे गम भला क्या होगा उसको, कुर्बां हुआ है जो चाहत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
एक रोज़ किताब से फूल मिला, बिलकुल मुझ जैसी ही हालत में..
तन्हा सा पर हँसता हुआ, फ़ना हो गया मोहब्बत में..
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