Main Mandir Me Betha Tha, Wo Maszid Me Bethi Thi..
मैं उनसे बातें तो नहीं करता पर उनकी बातें लाजवाब करता हूँ..
पेशे से शायर हूँ यारों, अल्फाज़ो से दिल का इलाज़ करता हूँ..
उन्हें तो मैं उस खुदा से भी छीन लाता पर उनकी बातो ने मुझे कायर बना रखा है..
यूँ तो शौंक नहीं है मुझे शायरी का पर उनकी आँखों ने मुझे शायर बना रखा है..
मैं मंदिर में बैठा था वो मस्जिद में बैठी थी..
मैं पंडित जी का बेटा था वो काज़ी साहब की बेटी थी..
मैं बुलेट पर चलकर आता था, वो बुरखे में गुजरती थी..
मैं कायल था उसकी आँखों का, वो मेरी नजर पर मरती थी..
मैं खड़ा रहता था चौराहे पर, वो भी छत पर चढ़ती थी..
मैं पूजा कर आता था मज़ारो की, वो मंदिर में नमाज़ पड़ती थी..
वो होली पे मुझे रंग लगाती, मैं ईद का जश्न मनाता था..
वो वैष्णो देवी जाती थी, मैं हाजी अली हो आता था..
वो मुझको क़ुरान सुनाती, मैं उसको वेद समझाता था..
वो हनुमान चालीसा पढ़ती थी, मैं सबको अजान सुनाता था..
उसे मांगता था मैं मेरे रब से, वो अल्लाह से मेरी दुआ करती थी..
ये सब उन दिनों की बात है जब वो मेरी हुआ करती थी..
फिर इस मजहबी इश्क़ का ऐसा अंजाम हुआ..
वो मुसलमानो में हो गयी और मैं हिन्दुओ में बदनाम हुआ..
मैं मंदिर में रोता था वो मस्जिद में रोती थी..
मैं पंडित जी का बेटा था, वो काज़ी साहब की बेटी थी..
रोते रोते हम लोगो की तब शाम ढला करती थी..
अपने अब्बू से छिपकर वो मस्जिद के पीछे मिला करती थी..
मैं पिघल जाता था बर्फ सा, वो जब भी छुआ करती थी..
ये सब उन दिनों की बात है जब वो मेरी हुआ करती थी..
कुछ मजहबी कीड़े आकर हमारी दुनिया उजाड़ गए..
जो खुदा से ना हारे थे, वो खुदा के बन्दों से हार गए..
जीतने की कोई गुंजाइस ना थी, मैं इश्क़ का हारा बाजी था..
जो उसका निकाह कराने आया था, वो उसी का बाप काज़ी था..
जो गूंज रही थी मेरे कानो में, वो उसकी शादी की शहनाई थी..
मैं कलियाँ बिछा रहा था गलियों में, आज मेरी जान की विदाई थी..
मैं वही मंदिर में बैठा था, पर आज वो डोली में बैठी थी..
मैं पंडित जी का बेटा था, वो काज़ी साहब की बेटी थी..
Ye peotry kis app pe milega
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