Khud Ke Banaye Rishton Me Ulajhti Ja Rahi Hun..
खुद के बनाये रिश्तों में उलझती जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
तेरे उन बेजान से खतो में तेरे अलफ़ाज़ आज भी ज़िंदा है मेरे पास...
पर खुद में जान होते हुए भी, बेजान सी होती जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
घर में बिखरी चीजे पसंद नहीं है मुझे..
इसलिए उन्हें समेटने की चाह में खुद को ही बिखेरती जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
मैं तो वो चिराग थी जिसे बारिश तक का खौफ ना था..
पर अब तो हवा के हलके से झोंके से डरी जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
पहले तो हर छोटी छोटी बात पर आंसू बहा दिया करती थी..
पर अब तो अपने आंसूओ को अपनी हंसी से छुपाये जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का वादा तो हम दोनों का था ना..
पर क्यों आज ये सारे वादे मैं अकेले ही निभाए जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
खुद के बनाये रिश्तों में उलझती जा रही हूँ..
एक तुझे पाने की ज़िद में खुद को खोती जा रही हूँ..
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