Nahin Likhti Main Uljhe Huye Alfaaz Doston,
नहीं लिखती मैं उलझे हुए अलफ़ाज़ दोस्तों,
क्योंकि मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
लिखती हूँ जो समझ सके सब,
मुझे उर्दू में गुफ्तगू करना नहीं आता..
मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
जिन गलियों के बारे में मुझे खुद पता नहीं,
उन रास्तों पे किसी और को भेजना नहीं आता..
निकल जाते है छोटी छोटी बात पर आंसू मेरे,
मुझे बादलों की तरह गरजना नहीं आता...
मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
Straight Forward हूँ, बोल देती हूँ जो मुँह में आता है,
यूँ छोटी छोटी बातों को दिल में रखकर घुटना नहीं आता..
और झुक जाती हूँ मैं भी कभी कभी कुछ चीजों के आगे,
क्योंकि मुझे रिश्तों को EGO में तोलना नहीं आता...
मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
अपनी Self Respect से भी प्यार है मुझे,
इसलिए मुझे किसी की बटरिंग करना नहीं आता..
अच्छी हूँ, बुरी हूँ, जैसी भी हूँ, ऐसी ही हूँ मैं,
क्योंकि मुझे किसी के लिए खुद को बदलना नहीं आता..
मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
सबसे गहरा रिश्ता है मेरे माँ पापा से मेरा,
मुझे दुनिया का कोई और रिश्ता समझ में नहीं आता..
मुझे घुमा फिरा के बात करना नहीं आता..
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