Subah Subh Kisi Pakke Musalmaan Ki Azaan Sa Lagta Hai..
सुबह सुबह किसी पक्के मुसलमान की अजान सा लगता है,
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
कभी पहचान हो जाती है पुरे शहर से मेरी,
और कभी ये आइना भी अनजान सा लगता है..
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
एक धड़कन सी बसी है तू दिल में मेरे,
जबकि कोई हक़ नहीं है तुझपर मेरा..
तेरा ख्याल रहता है मेरे जेहन में हर घडी,
तेरे बिना ये मन बड़ा बेजान सा लगता है..
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
सुबह सुबह किसी पक्के मुसलमान की अजान सा लगता है,
एक एहसान किया है उस खुदा ने मुझपर तुझसे मिलाकर मुझे,
वो हर घडी आजकल मुझपर मेहरबान सा लगता है..
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
देखी है दुनिया भर की खूबसूरती मैंने सच कहता हूँ..
दुनिया भर की सच्चाई है तेरी आँखों में सच कहता हूँ..
तुझे सोचकर ही दूर हो जाता है अकेलापन मेरा,
वरना हर महफ़िल हर मंजर सुनसान सा लगता है..
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
सुबह सुबह किसी पक्के मुसलमान की अजान सा लगता है,
तुझे एक रोज देखूं तो पूरा महीना रमज़ान सा लगता है..
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