Hi guys, my name is Mohammad Mubasir,
And People call me Moby.
और
मैं ज्यादा नहीं सिर्फ
आपके 5 मिनट लेना चाहता
हूँ,
एक
बात है, कुछ जज्बात
है जो आप तक
पहुंचाना चाहता हूँ,
ये
कहानी घर के बड़े
लड़के की है, जो
मैं आपको सुनाना चाहता
हूँ.
तो
बात कुछ यूँ है
कि मैं घर का
बड़ा लड़का हूँ.
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ.
थोड़ा
समझदार
हूँ, थोड़ा जिम्मेदार हूँ.
बस
इसीलिए घर छोड़ के
निकल चूका हूँ.
वरना
दिल्ली की एक बस्ती
में मकां मेरा भी
है.
किराये
का सही पर अम्मी
अब्बा से सजा जहाँ
मेरा भी है.
एक
छोटी बहन है, एक
छोटा भाई भी है.
और
उनके सरपरस्ती का कुछ जिम्मा
मुझ पे भी है.
चूँकि
उम्र होने लगी है
अब अब्बा की,
पर
घर का चूल्हा चौका
तो चलना ही है.
बस
यही कुछ बातें समझ
चुका हूँ,
इसीलिए
घर छोड़ के मैं
निकल चुका हूँ.
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ,
थोड़ा
समझदार
हूँ, थोड़ा जिम्मेदार हूँ.
तक़रीबन
उम्र 20 की थी,
जब मैंने घर की
दहलीज को पार किया
था.
और
दुनिया देखी भी ना
थी, जब मैंने काम
शुरू किया था.
धक्के
खाने की हिम्मत ना
थी पर खुद को
ये समझा लिया था,
कि
बेटा अगर आज तू
तपेगा नहीं तो कल
घर में चुल्हा जलेगा
नहीं.
कुछ
लोग जिन्दा है तेरे
आसरे पे,
अगर
आज तो बढ़ेगा नहीं
तो कल उनका संवरेगा
नहीं.
फिर
बहन की शादी भी
है, भाई की जेबखर्ची
भी है.
फिर
ईद भी आने वाली
है, अम्मी की दवाई
भी है.
बस
यही कुछ चंद बातें
समझ चुका हूँ.
इसीलिए
घर छोड़ के निकल
चुका हूँ.
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ.
थोड़ा
समझदार
हूँ, थोड़ा जिम्मेदार हूँ.
ना
अब्बा से ईद मिल
पता हूँ, ना अम्मी
की सेंवई होती है.
मैं
घर का बड़ा लड़का
हूँ, मेरी ईद बड़ी
बेरौनक होती है.
चार
दीवारे और एक आइना
है घर में,
बस
उनसे कुछ बकबका लेता
हूँ,
खुद
के सवालों का खुद
ही जवाब दे देता
हूँ.
अकेलेपन
में लिपटा हूँ मैं
पर सब गम छिपा
लेता हूँ.
जब
फ़ोन घर से आता
है तो कुछ अटपटे
किस्से भी सुना देता
हूँ.
सब
दर्द भरी दास्तान भुला
चुका हूँ, सब गिले
शिकवे मिटा चुका हूँ.
घर
को आबाद करने निकला
हूँ, पर खुद घर
से बेघर हो चुका
हूँ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ,
जो घर छोड़ के निकल चुका हूँ.
बावर्चीखाने
से नफरत थी मुझे,
पर
आज टेढ़े मेडी रोटी
भी पका लेता हूँ.
खानों
में नखरे करने वाला
था मैं,
पर
आज कच्चा पक्का कुछ
भी खा लेता हूँ.
पर
अफ़सोस क्या करूँ, ये
तो दस्तूर है दुनिया
का,
बस
यही कह के दिल
को बहला लेता हूँ.
वरना
बहुत खुशनसीब होते है
वो लोग,
जो
मिल के साथ रहते
है.
मुझ
जैसे तो शहर में
कई हजार रहते है.
कुछ
अस्पतालों में दम तोड़
देते है.
कुछ
बुखार में तपते रहते
है.
अपना
किसे कहे, वो तो
गाँव में रहते है.
इसीलिए
मैं एक बात कहना
चाहता हूँ,
कि
अगर कोई पडोसी हो
तुम्हारा मुझ जैसा,
तो
उसे अपना बना लेना.
घर
में ना सही तो
दिल में जगह दे
देना.
जो
बरसो से माँ के
खाने को तरस रहा
है,
कभी
महफ़िल सजे तो उसे
भी बुला लेना.
वो
आसमान की उड़ानों में
उड़ना चाहता है,
हो
सके तो उसके पंखो
में हौंसला बढ़ा देना.
फिर
वो जहाँ भी जायेगा,
वो तुम्हे याद करेगा,
वो घर का बड़ा लड़का है, बड़ा नाम करेगा.
Comments
Post a Comment
Thank You for Your Comment