Ab Farq Nahi Padta Poetry by Jai Ojha Part - 2

Ab Farq Nahi Padta Poetry by Jai Ojha Part - 2


Ek Waqt Tha Jab Tujhse Pyar Karta Tha,
Ab Tu Khud Mohabbat Ban Chali Aaye, Mujhe farq Nahin  Padta..

एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था.
अब तू खुद मोहब्बत बन चली आये, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब मैं तेरी परवाह करता था,
अब तो तू मेरी खातिर फ़ना भी हो जाये, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब ना जाने तेरी ID के कितने चक्कर लगाता था.
तेरी हर पोस्ट तेरे हर स्टेटस के मायने निकाला करता था.
लेकिन अब सुन ले, अब सुन ले तू,
जब से मुसलसल खेला है Block और Unblock का खेल मेरे साथ,
जा मुझे ता जिंदगी तेरी block list में रखले, मुझे फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

जा मुझे ता जिंदगी तेरी Block list में रखले, मुझे फर्क नहीं पड़ता.
याद कर वो वक़्त जब तेरी DP देखकर ही,
मेरी धड़कने तेज हो जाया करती थी.
याद कर वो वक़्त जब तेरी DP देखकर ही,
मेरी धड़कने तेज हो जाया करती थी.
लेकिन अब सुन ले, अब सुन ले तू,
अब किसी राह पर बिलकुल करीब से गुजर जाये, तो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब तुझे तकलीफ में देखकर मेरी आँखे भर आया करती थी.
तुझे जो खंरोच भी जाये तो मेरी सांसे अटक जाया करती थी.
लेकिन अब सुन ले कि अब तो बेफिक्री का सुरूर है मुझपर कुछ ऐसा,
कि कम्बख्त तेरी सांसे भी थम जाये तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
हाँ तेरा कहना भी वाजिब है कि इसे इश्क़ नहीं कहते
पर मेरी ये कविता सुनकर जो एक बेवफा को मेरी मोहब्बत पर शक हो जाये.
तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब तेरे इश्क़ कि मिशालें दिया करता था.
प्यार मोहब्बत के मायनो में बस कसमें वादे लिखा करता था.
अरे क्या कमाल हश्र किया है तूने वफ़ादाराने उल्फत का,
कि अब ये सारे का सारा शहर बेवफा हो जाये, मुझे फर्क नहीं पड़ता.
हाँ माना तेरी खूबसूरती मशहूर है दुनिया जहाँ में,
अगर इस कविता में तेरी बेवफाई के चर्चे हो जाये तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब तेरी एक झलक पाने के लिए तरस जाया करता था.
तू जिस कोने से नजर आती थी, मैं बस वही ठहर जाया करता था.
अरे बिठा रखा था जो मुद्दतो से इन पलकों पे मैंने,
उसूलो से तो गिर गयी है, अब नजरो से गिर जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
बदसीरत हो गए हो तो फिजूल है ये खूबसूरती तुम्हारी,
फिर भले खुदा तुम्हे हसीं चेहरे बक्श जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब तुझे शामों-शहर बैठकर मनाया करता था.
गुस्ताखियाँ तेरी हुआ करती थी और दरख्वास्तें मैं किया करता था.
तेरे उस बेवजह रूठने को मनाया है जाने कितनी दफा मैंने,
कि भले ही पूरी की पूरी कायनात ख़फ़ा हो जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
अरे जो मेरी ना हो सकी वो उसकी क्या होगी,
अब भले कुछ वक़्त के लिए किसी गैर का दिल बहल जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

एक वक़्त था जब तेरी महक पाने को,
तू जहां से गुजरती थी, मैं वहां से गुजरता था.
जो हवा तुझे छूती है, वो मुझे छु जाये इस भरोसे चलता था.
लेकिन अब सुन ले कि अब तो सूफी हूँ खुशबु है खुद की सांसो में,
अब तो भले तू इस हवा में भी घुल जाये तो मुझे फर्क नहीं पड़ता.
कि जब से मिट्टी होना पसंद आया है मुझको,
फिर भले महलो में आशियाँ हो जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...

खैर अब तुझसे नफरत है, मोहब्बत है, कोई गिला शिकवा नहीं है.
कुछ अनसुना है अनकहा है, बचा कोई सिलसिला नहीं है.
महज इन कविताओं में जिक्र बचा है तेरा और सुन ले,
कि इतना ताल्लुक भी मिट जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
राबदा हो बेवफाओ से तो बेहतर है, मेरे यार सब सुन लेना,
फिर रिश्ता भले काफ़िर दिलो से हो जाये तो फर्क नहीं पड़ता.
एक वक़्त था जब तुझसे बेइंतहा प्यार करता था...


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