Kaash Poetry by Ratnesh Srivastav

Kaash Poetry by Ratnesh Srivastav


Maana ki wo Meri Sabkuch Thi Aur Main Uska Kuch Nahin,
Par Kash Kabhi wo bhi To Mujhe Is Najariye Se Dekh  Pati.
माना की वो मेरी सबकुछ थी और मैं उसका कुछ नहीं,
पर काश कभी वो भी तो मुझे इस नजरिये से देख पाती

मानाकीवोमुझेSad देखकरकभीगलेलगाती,
पर काश मुझे Sad देखकर एकछोटासा Joke तोसुनाती

माना की वो मुझे कभी अपना बॉयफ्रेंड ना बनाती,
पर काश बॉयफ्रेंड ना सही, बेस्ट फ्रेंड तो बनाती

मानाकीवोमेरेसाथघूमनेनाजाती,
पर काश एक बार मिलने तो जरूर आती

माना की वो मुझसे हंसकर बात कर पाती,
पर काश एक बार मुझपर थोड़ा गुस्सा ही कर जाती

मानाकीवोअपनीलाइफमेंबहुतBusy है,
पर काश कभी Whatsapp याfacebook पर एक Msg ही करजाती

माना की वो कभी मुझसे प्यार से बात ना कर पाती,
पर काश सपने में ही सही एक बार हां तो बोल जाती

मानाकीउसेकभीमेरेहोनेकाएहसासनाथा,
पर काश जाते जाते पलटकर एक Cute सी Smile हीदेजाती

माना की मुझमें बोलने की हिम्मत ना थी,
पर काश कभी तो वो मेरा इशारा समझ पाती

मानाकीवोआजभीअपनीजिंदगीमेंबहुतखुशहोगी,
पर काश क्या पता कहीं ना कहीं मुझे याद तो करती होगी

माना की मेरी ही नहीं बहुतों की कहानी ऐसी है,
पर काश मेरी ना सही, किसी की तो पूरी हो जाती


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