मैं तुम्हे जरूर मिलूंगा..
हाँ मैं तुम्हे जरूर मिलूंगा, मगर आज नहीं..
क्योंकि आज तुम किसी उलझन में लगी पड़ी हो,
और मैं आज भी तुम में खुद को सुलझाने में पड़ा हुआ हूँ..
तो हाँ मैं तुम्हे मिलूंगा जरूर, पर आज नहीं..
क्योंकि आज भी तुम पतझड़ के पत्तो के पीछे भाग रही हो,
और आज भी मेरी आंखे तुम्हारा बारिश में इंतज़ार कर रही है..
नहीं, मैं तुम्हे नहीं मिलूंगा, आज तो नहीं मिलूंगा..
क्योंकि आज भी मैं किसी टपरी पे चाय के कप के धुएं में से तुम्हारा चेहरा देखता हूँ,
और तुम आज भी ठंडी कॉफ़ी के झाग में कहीं खोयी हुई सी हो..
तो हाँ मैं तुम्हे मिलूंगा तो जरूर, मगर आज नहीं..
क्योंकि आज भी जब मैं पीछे मुड़के देखता हूँ, तुम्हे ही पाता हूँ..
मगर जब तुम पीछे मुड़कर देखती हो, तुम पीछे मुड़के देखती ही कहाँ हो?
तो हाँ मैं तुम्हे मिलूंगा जरूर पर आज नहीं..
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