माँ तेरी याद बहुत सताती..
रात को देरी से सो जाऊँ तो अब डाँट नहीं सुनाती..
सुबह को जल्दी उठाने के लिए अब कोई आवाज नहीं आती..
"बाहर का खाना अच्छा नहीं है, मत खा"
ऐसा कई बार सुना था..
आज तुझसे दूर है तो शौंक से या फिर,
मजबूरी में बाहर का खाना खाते है..
पर जीभ से तेरे हाथो से बनी रोटी की मिठास नहीं जाती..
कंगन की खनक नहीं सुनाई पड़ती..
"बेटा जल्दी घर आ जाना, रात को ठंड लगेगी, स्वेटर लेके जा"
आज जब भी ऑफिस से घर वापिस जाते ठंड लगती है,
तब माँ तेरी वो बात जरूर याद आती है..
माँ तेरी हर बात जरूर याद आती है..
बेपरवाही से बीमार पड़ता तो रो रो के दवाई लेकर आती..
बुखार को भगाने तू रात भर गीले कपडे लगाती..
मुझे पहले खिलाती, खुद ना खाती..
ना जाने क्यों आज बुखार लाने की बचकानी चाह दिल से आती..
माँ तेरी याद बहुत सताती, माँ तेरी याद बहुत सताती..
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